Last modified on 19 सितम्बर 2018, at 15:34

पद / 4 / श्रीजुगलप्रिया

दृग तुम चपलता तजि देहु।
गुजरहु चरनारबिन्दनि होय मधुप सनेहु॥
दसहुँ दिसि जित तित फिरहु किन सकल जग रस लेहु।
नै न मिलिहै अमित सुख कहुँ जो मिलै या गेहु॥
गहौ प्रीति प्रतीति दृढ़ ज्यों रटत चातक मेहु।
बनो चारु चकोर पिय मुख-चन्द छबि रस एहु॥