कहत पुकार कोइलिया हे ऋतुराज।
न्याय-दृष्टि से देखहु बिपिन-समाज॥
सोना सम्पति काज त्यागि सब साज।
भये उदासी बिरिया बिसरो लाज॥
ध्यान करहु इत अब सुध कस नहिं लेत।
तीछन बहत बयरिया करत अचेत॥
कहत पुकार कोइलिया हे ऋतुराज।
न्याय-दृष्टि से देखहु बिपिन-समाज॥
सोना सम्पति काज त्यागि सब साज।
भये उदासी बिरिया बिसरो लाज॥
ध्यान करहु इत अब सुध कस नहिं लेत।
तीछन बहत बयरिया करत अचेत॥