सखी मेरी नैननि नींद दुरी।
पिय सों नहिं मेरो बस कछु री,
तलफि तलफि यों ही निसि बीतति नीर बिना मछुरी॥
उड़ि उड़ि जात प्रान-पंछी तहँ बजत जहाँ बँसुरी।
‘जुगल-प्रिया’ पिया कैसे पाऊँ प्रगट सुप्रीति जुरी॥
सखी मेरी नैननि नींद दुरी।
पिय सों नहिं मेरो बस कछु री,
तलफि तलफि यों ही निसि बीतति नीर बिना मछुरी॥
उड़ि उड़ि जात प्रान-पंछी तहँ बजत जहाँ बँसुरी।
‘जुगल-प्रिया’ पिया कैसे पाऊँ प्रगट सुप्रीति जुरी॥