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पन्द्रह अगस्त / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

निर्मल नभ पर
मार्त्तण्ड प्रबल
उद्दण्ड किरणसँ तप्त भेल
विश्वक समस्त कय दूर निविड़तम अन्धकार
सूर्यव्रतीक कय देथि द्विगुण आँखिक इजोत,
जनिका दृष्टिक पथपर नाचय
सदिकाल
प्रबल वेदान्तक सभ सिद्धान्त
सतत रत कर्मयोगमे
पाबि प्रखरतर रश्मि रविक
पुलकित होइत छल गात्र जनिक,
से योगी गण
निर्भय अनुक्षण
उद्दण्ड प्रतापेँ
शमन, दमन ओ दण्ड भेदकेँ अपनौने
पृथ्वीक एक सम्राटक
छत्रच्छायामे निश्चिन्त छला।
नहि खलक छलक छल भय ककरो,
नहि पापीकेर लेश कत्तहु
अन्यायीकेँ कय भस्मसात्
जे हरथि दम्भ
से सार्वभौम सत्ताधारी
भारतक भूमिकेँ छला अलंकृत
जावत धरि कयने, ताधरि
नहि विश्वक कोनो भाग
अशान्तिक अनुभव मात्र करैत रहय
सर्वत्र शान्तिमय स्रोत बहय
मिथिलाक कोरमे परिपालित
सूगा धरि मन्त्रोच्चार करय
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निर्मल नभपर
श्यामल श्यामल मेघक टिक्कर
टहलय लागल,
अन्यायी चारू दिस जागल
उद्दण्ड किरणकँ झाँपि-तोपि,
कय उठल घटा
सूर्यक ‘प्रताप’ भय गेल अस्त
ससार व्यस्त भय उठल,
बहल अन्यायक अविरल स्रोत,
विश्व भरिमे बढ़ि आयल बाढ़ि,
गेल भसिया योगीकेर योग,
तपस्वीकेर तपस्या गेल,
विश्वमे विकट समस्या भेल,
कतय छल भरल ज्ञान विज्ञान?
कतय छल भूमि विश्वमे आन?
हाय! से महागर्त्तमे खसल,
धर्म ध्वज धरणीमे जा धसल,
मनुजसँ भेल मनुजता दूर,
देशमे पैसल तेहने क्रूर,
अलंकृत छल जे विश्वक अंश
भेल से पलमे चकनाचूर,
स्वार्थकेर पजरल तेहने आगि
भस्म भय गेल जाहिमे लागि
विश्वकेर सारभूत विज्ञान
बहल अन्यायक स्रोत महान,
विकल भय आर्त्तनाद कय उठल
निखिल भूगागक जर्जर प्राण,
दैवकेँ देलक सूखब धिक्कारि
विकल प्राणीक आर्त्त चीत्कार
तखन अवतार लेल साकार
अहिंसा मूर्त्ति
कयल मानवक मनोरथ पूर्त्ति।
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आइ आयल ओ पवनक झोंक
दूर हटि गेल श्याम घनघोर
भेल अछि सम्प्रति स्वर्णिम भोर,
आब निर्मल अछि गगनक प्रान्त,
कते दिनसँ जे छल अति श्रान्त
आइ बुझि पड़इछ से पुनि शान्त,
आइ पुलकित अछि लोकक गात्र
आइ अछि भरल अमृतसँ पात्र
जतय छल दुखमे सभ संलिप्त
ततय बुझि पड़इछ से सभ तृप्त
तपस्या ई थिक ककर?
जकर अछि विधिसँ बना देल
ओ दिव्य दुहटा नेत्र,
जकर बल उपजल क्रान्तिक क्षेत्र,
धन्य नरपुंगव! तोहर ज्ञान,
धन्य नरपुगंव! तोहर ध्यान,
चकित अछि विश्वक सभ विज्ञान,
विजयमे मस्त तुमुल कोलाहलसँ
वा गंगा-यमुना-कलकलसँ
ई ध्वनि अबैछ अविराम
धन्य हे कृष्ण, धन्य हे राम!
धन्य हे गान्धी रूप ललाम।
तपस्या सफल भेल जेँ हेतु
अतः फहराइत अछि ई केतु
अमरपुर धरिमे अछि जयनाद
आइ आयल अछि ई संवाद
सभक मुख पर अछि मधुरिम हास,
आइ हँसि रहल हमर इतिहास,
आइसँ अमर रहत ई पर्व,
आइसँ अमर रहत ई गर्व,
दानवी माया भय गेल अस्त
तुलायल पन्द्रह सैह अगस्त।