पपीहा पी-पी गावत बा।
ऊपर गगन में बदरी छइले;
रतिया खूब अन्हरिया भइले;
दरद भरल सुर में गा-गा के
प्रीत जगावत बा।
तरु-दल में पंछी निनिआइल;
आज पपीहा बा भरमाइल;
कहाँ पिया बा? कहाँ पिया बा?
टेर लगावत बा।
नभ सूना, सुनसान डगरिया;
नजर न आवत गाँव-नगरिया;
आपन दुनिया में आँसू-
मोती ढरकावत बा।
कतना सुख के गिना-गिना रे;
पर सब सूना एक बिना रे;
अइसन बात अकेले रो-रो
आज सुनावत बा।
पपीहा पी-पी गावत बा।