सुनिए पप्पू प्यारे जी !
ये क्या ढंग तुम्हारे जी ?
घर आते ही जल्दी-जल्दी
बस्ता फेंका इधर-उधर,
ड्रेस उतारी, और डाल दी
गोल-गोल कर बिस्तर पर;
टाई, बेल्ट पड़े सब मारे-मारे जी ।
कोई भी हो चीज़, सभी को-
इज्ज़त देनी पड़ती है,
अगर ढंग से रखो उसे तो
वो ज़्यादा दिन चलती है;
पर हम तो समझा-समझा कर हारे जी ।