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ढलान पर खड़ी है पहाड़ी बकरी
कमान जैसा झुका हुआ पुल उसी दिन से जर्जर है
जिस दिन वह बना
क्षितिज को कौन समझ सकता है
साही के कांटों की तरह घने बरसों से गुज़रते हुए
दिन और रातों से, हवा में लटकते ध्वनि करते घुंघरू
उतने ही नैराश्य से भरे हैं
जितना गोदना गुदाए पुरुष, पुरखों की आवाज़ें मत सुनो
लंबी रात चुपचाप एक पत्थर के भीतर प्रवेश करती है
पत्थर को हिला देने की इच्छा
दरअसल एक पर्वत शृंखला है जो इतिहास की किताबों में उठती और गिरती है
अंग्रेजी भाषा से रूपांतरण : गीत चतुर्वेदी