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परखनली की अज़ान / तलअत इरफ़ानी


परखनली की अज़ान
खुदाऐ - बरतर के खौफ से जो,
बशर के हक़ में -
नमाज़ उतारी गयी ज़मी पर,
वो हमसे नीत्शे के उन फरिश्तों ने छीन ली है,
जो उस को मुर्दा करार दे कर
खुदा की मैय्यत पर आज तक कह कहा रहे हैं,
उन्हीं फरिश्तों ने इस ज़मीन पर
कुछ ऐसे उस्ताद भी उतारे जो
हम को सम्भोग में समाधि सिखा रहे हैं,

परखनली की मशीन जो साँस ले रही है,
वो आदमो - हव्वा की कहानी को
इक नया जनम दे रही है।
न जाने इस आदमी का क्या हो?
न जाने क्या हो?