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परबत जेड़ी पीर / मानसिंह राठौड़

वैण विचारै बोलणा,घाव करै गंभीर ।
अंतर मन ऊपजै,परबत जेड़ी पीर ।।

हरदम मन अधीर हुवै,नैणां बरसे नीर ।
खुरच खुरच आ खायगी,परबत जेड़ी पीर ।।

कुबद कमाई कौरवे,खींच द्रोपदी चीर ।
पांडवां मन पनप रही,परबत जेड़ी पीर ।

सुणयो अणसुणयो करूं,(पण)तड़फ़ावै तहरीर ।
नैण जगावैह नुगरा, परबत जेड़ी पीर ।

सिरजण कर'ल्यां साँवठों,तराश ल्यां तकदीर ।
सबद कटार चलाय नैं,मारां मन री पीर ।।

अंतस राखो ऊजळो,तरकस ज्ञान तुणीर ।
मात भवानी मेटसी,परबत जेड़ी पीर ।

सजण मिनखां रो सँगड़ो,साँच नाम शमसीर ।
मेटण वाळो मेटसी,परबत जेड़ी पीर ।।