Last modified on 22 दिसम्बर 2011, at 11:33

परमात्मा का प्यार / नाथूराम शर्मा 'शंकर'

जगदाधार दयालु उदार,
जिस पर पूरा प्यार करेगा।
उसकी बिगड़ी चाल सुधार, सिर से भ्रम का भूत उतार,
दे कर मंगलमूल विचार, उसमें उत्तम भाव भरेगा।
दैहिक, दैविक, भौतिक ताप, दाहक दम्भ कुकर्म कलाप,
अगले-पिछले संचित पाप, लेकर साथ प्रमाद मरेगा।
कर के तन, मन, वाणी शुद्ध, जीवन धार धर्म-अविरुद्ध,
बनकर बोध-बिहारी बुद्ध, दुस्तर मोह-समुद्र तरेगा।
अनुचित भोगों से मुख मोड़, अस्थिर विषय-वासना छोड़,
बन्धन जन्म-मरण के तोड़, ‘शंकर’ मुक्त-स्वरूप धरेगा।