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परवाना / प्रेम कुमार "सागर"


क्योँ जाने लोग कहते है, मै पागल हूँ दीवाना हूँ,
जहाँ तुम ठौर पा जाओ, अरे मै वो ठिकाना हूँ

क्या जाने लहरें बावली, है कितनी पीड़ नदिया में
तू शायर है नवेलों का, मै एक गुजरा जमाना हूँ

बिकेगी अब मेरी इज्जत खुले नंगे बाज़ार में
तू तूफाँ है मयोन्मत सा, मै टूटा आशियाना हूँ

तपिश देखो मोहब्बत की ये कैसे पर कतरती है
जला लौ में तेरे उस दिन, वही मै परवाना हूँ

'सागर' मिलन अपना, हिकारत से भरा सपना
तू रहता है उजालों में, मै एक अँधा- बेगाना हूँ |