Last modified on 29 सितम्बर 2010, at 12:01

परिंदे / लीलाधर मंडलोई


परिंदों की तरह
सफर में रहने वाले
ये मजूर

आज इतवार को रूके हैं
उस नीलगूं तलहटी में
वहां दहक रहा है अलाव

आग के चारों तरफ
मदमस्‍त होकर नाच-गा रहे हैं

ये परिंदे आज पिकनिक मना रहे हैं