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परिणाम / लोकगीता / लक्ष्मण सिंह चौहान

पाण्डव के धन अब मान बल बढ़ाई रामा।
दुरयोधन के तीर सन चुभैय हो सांवलिया।
पाण्डव के सभाभवन याद करि करि रामा।
जली भूनी राख ऊते होवैग सांवलिया॥
सौ सौ बोछी सन टीस मारैय एक बेरि रामा।
जो दुरपदी ठहाका उर आवैय हो सांवलिया॥
मरी जैबो बेख मानैय चुलू भर पानीयों में।
पाण्डव के घर जो न नाचैय हो सांवलिया।
नमरी चतुर धूर्त शकुनि जुवारिया हो॥
मामा के बुलावे ततकाल हो सांवलिया॥
जैसन छैय भामा तैसन भगना बहैया हो।
इत मिरचाइ उत नीम हो सांवलिया॥
चलु मामा जुवा खेले युधिष्ठिर साथ रामा।
हाँ हाँ कहैय मामा, संग होवैय हो सांवलिया॥
धन-जन-राज-पाट पाण्डव के जीतैय रामा।
दुरपदी दुलारियो के हारैय हो सांवलिया॥