Last modified on 2 नवम्बर 2017, at 19:27

परिश्रम / राधेश्याम चौधरी

खदानोॅ मेॅ तोड़ी रहलोॅ छै पत्थर
खुल्ला आसमान छै
रोज खबर सेॅ बेखबर छै
आसपास रोॅ आबाज सेॅ भी
पत्थर रोॅ आवाज
जिनगी रोॅ गीत
गाना छै बुतरू वास्तें
जीना छै बच्चा-बुतरू
आरो जनानी वास्तें।
वजनदार हथौड़ा सेॅ
हाथोॅ रोॅ लकीर बदली रहलोॅ छै।
सामनेॅ हरियाली छै
सामना मेॅ पहाड़ रं जिनगी छै।
हथेली सेॅ रोटी मिलै छै
फेनू दोसरोॅ दिन
हाथोॅ मेॅ हथौड़ा रहै छै।
जिनगी चलै छै
दू पाटोॅ रोॅ बीचोॅ मेॅ
जेना संघर्षशील प्राणी
धरती सरंगोॅ के बीच
जीयै छै आदमी।