कांई हुवै परेम?
विचारतौ उभौ हो ऐकलौ
कै याद आयगी
दादी सा री डकार लाम्बी!
"वासना पुरख री है सरप
अर लुगाई री ओट है बाम्बी!
जिण रै सरणै हुंता‘ई
अलौप हूज्यै सरप
टूटज्यै पुरख रौ दरप!"
कैंवता दादी सा,
परेम लाडी!
आ‘ई डकार हुवै
जे आदमी री सुरतां मांय करतार हुवै!