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पर्यावरण दोहा / बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा ‘बिन्दु’

कानन को मत काटिये, वह तेरा हमराज
काटे जो इसको अगर, साथ गिरेगी गाज।
पर्यावरण अब रो रही, बहती अश्रु की घार
जल-वायु प्रदूषित हुआ, सूरज है अंगार।
गंगा मैली हो गयी, गिरा हीम का ताज
धरती के इस साज को, आप बचाओ आज।
करते सब खिलवाड़ हैं, इस घरती के साथ
सब तमाशा देख रहे, रखे हाथ पर हाथ।
हाल खनन की मत कहो, होंगे सब हैरान
पैसे पर अब बिक रहे, देकर अपनी जान।