पर्वत पर चढ़कर
इतराने वाले भी कहते हैं
पर्वत चुप रहते हैं ।
कोई सड़क, सुरंग बनाए
कोई पूजे या गरियाए
लेकिन पौरुष का प्रस्तावन
क्षुद्र प्रहारक जान न पाए
ऐसे दुख-सुख सहज भाव से
पर्वत ही सहते हैं...
पर्वत चुप रहते हैं ।
रीझे गगन-गन्ध के ऊपर
इसीलिए कहलाए भूधर
बादल का दल, गल जाता है
जिसके रजत शिखर को छूकर
अपनी ऊँचाई से ऊँचे
सत्यमेव जयते हैं...
पर्वत चुप रहते हैं ।