Last modified on 15 अक्टूबर 2007, at 12:53

पलकें चुभ रही हैं / ओसिप मंदेलश्ताम

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: ओसिप मंदेलश्ताम  » संग्रह: तेरे क़दमों का संगीत
»  पलकें चुभ रही हैं

पलकें चुभ रही हैं

हृदय से आँसू छलकने को आतुर

डर नहीं लगता फिर भी

पर ऎसा लगता है

आएगा

आएगा फिर-फिर

आएगा तूफ़ान


पर कोई बात है

कोई बात है अज़ीब

जो कह रही है मुझ से

सब कुछ भूल जा तू

बस यही तेरा नसीब


बहुत उमस है

घुट रहा है दम

फिर भी मन करता है बेहद

जीवन यह जी लूँ मैं, हमदम


यह सुबह की शुरूआत है

जाग उठे हैं साँप, छ्छूंदर, घूस, नेवले

अपने बिलों से निकल-निकल

उनींदे से घूम रहे हैं इधर-उधर

कौए अपनी ख़ुरदरी आवाज़ में गा रहे हैं

और दूर वहाँ द्वीप के पीछे

सूर्य ऊपर उठ रहा है


(रचनाकाल : 6 अप्रैल 1931)