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पलकें बिछाये सदा / प्रेमलता त्रिपाठी

तुम हमारे हृदय में समाये सदा।
याद हमने किया तुम भुलाये सदा।

दूर तुमसे गयी शाम ढलती हुई,
हम खड़े राह पलकें बिछाये सदा।

है यही प्रीति की रीति कहते सभी,
नैन ये नीर निर्झर बहाये सदा।

धीर कैसे धरें मीत मन की सुनो,
हार अपनी कहें जो पराये सदा।

रास आये नहीं रीति जग की अरे,
सेज काँटों भरी हैं सजाये सदा।

प्रेम पूजा हृदय हीन क्या जानते,
ज्योति मन में तनिक यूँ जलाये सदा।