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पलक-नोंक / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

44
हाथ चूम लो
मैं चूमूँ चन्द्रभाल
नैन विशाल।
45
दर्द तुम्हारे
मुझे हैं सुधापान
हे मेरे प्राण!
46
कोई भी बूँद
न गिरे धरा पर
चूमे अधर।
47
जिह्वा- अमृत
पी अधर- चषक
होंगे अमर।
48
पलक- नोक
थिर ओस के जैसे
अश्रु दान दो।
49
जन्म- मरण
शाश्वत हैं दोनों
मैं -तुम भी।
50
मेरी पुकार
सुनकर आ जाओ
कभी तो द्वार!
51
आपकी बानी
मिले मरुभूमि में
शीतल पानी।
52
आश्लेष बँधे
ज्यों ये धरा -गगन
हम भी बँधे।
53
चूमती भोर
चुप झील का तन
तुम चूम लो।