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पलाश के वन / सुस्मिता बसु मजूमदार 'अदा'

दास्तान-ए-शाख कहूँ
या अनवार-ए-इलाही

इसे अनवार-ए-इलाही कहते हो?
पत्ते छोड़ कर चले गये कब
आग फूलों ने लगाई है।

कितना बेबस हूँ मैं
बिछड़ने का गम जला रहा है इधर
उधर नर्म फूलों की आग
झुलसा रही है सो अलग
तुम इसे अनवार-ए-इलाही कहते हो?