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पल सुहाना चाहिए / प्रेमलता त्रिपाठी

मीत सच्चा मन मिले वह,पल सुहाना चाहिए,
शुद्ध अपनी धारणा हो, पथ बनाना चाहिए ।

प्राण घाती स्वार्थ तजिए,मिल सके खुशियाँ तभी,
एक दूजे से मिले वह, प्यार पाना चाहिए।

जीत घुटने टेक दे उस, पीर का भी अंत हो,
हार के बदले विवशता, को मिटाना चाहिए।

अंत कर दे जो तमस का,हो उजाला हर सुबह,
पथ दिखाता ज्ञान दीपक, वह जलाना चाहिए ।

मीत जो बनते रुकावट, नासमझ हैं वे सदा,
हो रहे गुमराह उनको, राह दिखाना चाहिए ।