पवित्रा पेहेरी हिंडोरे झूले।
श्यामा श्याम बराबर बैठे निरखत ही समतुले ॥१॥
ललितादिक झुलावत ठाडी खंभन लग अनुकूलें ।
ब्रजजन तहां मिल गावत नृत्यत प्रेम मगन सुध भूले ॥२॥
मंद मंद घन बरखत तिंहि छिन बाम सबे सचु पावत।
कालिंदी तट यह विधि लालन पशु पंछी सुख पावत ॥३॥
वृंदावन शोभा कहा वरनुं वेदहु पार न पावत ।
श्री वल्लभ पद कमल कृपा तें रसिक चरन रज पावत ॥४॥