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पहचान-पहचान / शशि सहगल

अगर मैं किसी और की विवाहिता होती
तब भी
तुम्हारा स्पर्श
मेरी बन्द आँखें पहचान जातीं
पर
साथ रहते-रहते
अब तो
पहचान का एहसास भी घिस गया है।