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पहरेदार / कुमार कृष्ण

सोये हुए कस्बे में
जब भी गूँजती है लोहे की आवाज़
हम पूरे विश्वास के साथ कहते हैं
अँधेरे के खिलाफ जंग लड़ता हुआ
जान- माल की सुरक्षा में एक आदमी शामिल है
सिर्फ़ एक आदमी
उसे रात को सोने की इजाजत नहीं।

अँधेरे के ख़िलाफ
बन्दूक की जगह काठ और रोशनी से लड़ती हुई
लोहे की सीटीनुमा आवाज़ का दूसरा नाम
पहरेदार है।

वह जानता है उसकी पहरेदारी से
खत्म नहीं होगी वारदातें
नहीं होगी बन्द भूख की जंग
अँधेरे के ख़िलाफ चलकर
सीटी बजाते हुए
वह कत्ल हो जाएगा एक दिन।
सीटी की आवाज़ कस्बे को
अपनी उपस्थिति से
जब भी करती है आमन्त्रित अपनी ओर
नींद में डूबे हुए लोग
सीटी की आवाज़ पर
ठण्ड के बारे में सोचते हैं
या बिस्तर की जकड़ के बारे
वे दूसरी सीटी बजने तक
अपने- अपने घरों में
खुद को सुरक्षित समझते हैं।

पहरेदार
गलियों का बीजगणित हल करते हुए
नींद में कैद दिमाग की
खतूतबदानी खोलता है
सीटी बजाता हुआ पहरेदार
अँधेरे के पास होता है या
अपने जूतों के पास
वह काठ की लाठी से बतियाता हुआ
कस्बे की ख़ामोशी के बारे में सोचता है।