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पहला पहला पानी / मोहन अम्बर

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आज तुम्हारी सुधि गाने को फिर मन तरसा है।
और यहाँ पर पहला-पहला पानी बरसा है॥
जैसे बूढ़ा कृषक जवान हुआ
वैसे मैं भी दुःख बिसराता हूँ।
प्राणों के खेतों में बीज बना
शब्दों के दाने बिखराता हूँ।
फिर भी गीत विदा की घड़ियों-सा,
तेरे मेरे रूँधे कण्ठ भर्राए स्वर-सा है।
और यहाँ पर पहला-पहला पानी बरसा है।
मेघ बरस कर बिखर गये हैं यों
जैसे तुम रूठो फिर मन जाओ।
मध्यमवर्गी नारी के दृग-सी
दो पल हँस कर आँसू बन जाओ।
दर्द उमस का कैसे बतलाऊँ,
भरती के दफ्तर के रूखे प्रत्युत्तर-सा है।
और यहाँ पर पहला-पहला पानी बरसा है॥
तेरी मिलना तुरता जैसा ही,
देहरी के भीतर तक पानी है।
फटी चुनरिया वाला परदा ही
दरवाजे पर एक निशानी है।
बिना तुम्हारे यह एकाकीपन
अर्थ संकटी बच्चों वाले श्रम के घर-सा है।
और यहाँ पर पहला-पहला पानी बरसा है।
किरण नहाया बादल देखा तो
तेरी मेंहदी लगी हथेली-सा
कंकड़ खेल खिलाती थाल-गगन
सूर्य की जिसमें रखी अधेली-सा।
पूरा वातावरण ब्याह का है
मेरे पिता बने प्राणों पर जो नश्तर-सा है
और यहाँ पर पहला-पहला पानी बरसा है।