पक्षी उड़ते
जाते हैं
दूर दिशाओं में
लौट आते
आखिर शाम ढलते
फिर अपने
घोंसलों में पंख पैफलाये
गाड़ियां जातीं
वापिस आ जातीं
स्टेशनों पर
लंबी सीटियां बजातीं
मौसम आते
लौट जाते
दिन चढ़ता
छिप जाता
फिर चढ़ता
बर्फ पिघलती
नदियों में नीर बहता
समुंदरों में पानी
भाप बन कर उड़ता
बादल बनता
फिर पहाड़ों की
चोटियों पर
बर्फ बन कर चमकता
उड़ती आत्मा
शून्य में भटकती
फिर किसी जिस्म में
प्रवेश करती
सब कुछ जाता
सब कुछ लौट आता
नहीं लौटता
इस ब्रहामाण्ड में
तो सिर्फ
पहला प्यार नहीं लौटता
एक बार गुम होता
तो मनुष्य
जन्म-जन्म
कितने जन्म
उस के लिए
भटकता रहता...।