Last modified on 25 मई 2009, at 18:27

पहला सलाम / कैफ़ी आज़मी

एक रंगीन झिझक एक सादा पयाम
कैसे भूलूँ किसी का वो पहला सलाम
फूल रुख़्सार के रसमसाने लगे
हाथ उठा क़दम डगमगाने लगे
रंग-सा ख़ाल-ओ-ख़द से छलकने लगा
सर से रंगीन आँचल ढलकने लगा
अजनबियत निगाहें चुराने लगी
दिन धड़कने लगा लहर आने लगी
साँस में इक गुलाबी गिरह पड़ गई
होंठ थरथराये सिमटे नज़र गड़ गई
रह गया उम्र भर के लिये ये हिजाब
क्यों न संभला हुआ दे सका मैं जवाब
क्यों मैं बे-क़स्द बे-अज़्म बे-वास्ता
दूसरी सम्त घबरा के तकने लगा