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पहला सावन / ऋषभ देव शर्मा

सुनो !
सावन
पहली बार नहीं आया है,
आज से पहले भी
अनगिनत बार
जवानी आ चुकी है
नीम की बौर पर

आज से पहले भी
तिरछी बौछारों में नहाकर
मिठास से भर गई है
कूँआरी कड़वी निंबोलियाँ

आज से पहले भी
झूले की बाँहों में
आँख मींचकर
मल्हार अलापा है
बेसुधी में रूप ने !

सोचो !
अब तुम्हीं बताओ,
इस बरस का सावन
अधिक बौराया सा क्यों है ?

मेरी आँखों में
क्यों
कड़वाहट सी भरती है
और
झरने लगता है शहद ?