उसे नहीं मालूम था
सपनों और हक़ीक़त की दुनिया में फ़र्क
जब उसे फूलों की सेज से
उतारा गया था बेरहमी से
घसीटते हुए
वह समझती
उस यातना का नया रूप
कि मुँह खुल चुका था छाते-सा
और उसकी साँसें टँग चुकी थी
खूँटी पर
यातना के तहत
जिसके सारे दस्तावेज़
जल चुके थे
और वह राख में
खोज रही थी
अपनी बची हुई हड्डियाँ
उस हवेली में बेख़बर
यातना की शिकार
पहली नहीं थी वह।