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पहली वर्षा के बाद / शेखर जोशी

भूरी मटमैली चादर ओढ़े
बूढ़े पुरखों से चार पहाड़
मिलजुल बैठे
ऊँघते-ऊँघते-ऊँघते ।

घाटी के ओंठों से कुहरा उठता
मन मारे, थके-हारे बेचारे
दिन-दिन भर
चिलम फूँकते-फूँकते-फूँकते ।