लौटाओ घाट पर
नदी को
पहले तो यही करो
फिर बीजो घाटी में
पुरखों की थाती को
बाँचो घर-घर जाकर
नेह-लिखी पाती को
मंदिर-मस्जिद में
बंधु, सुनो
एक साथ जोत धरो
किसी एक देहरी से
सूरज को मत बाँधो
जो सबका साँझा है
उस सुख को ही, साधो
बिना बात की जो
हैं इच्छाएँ
भाई, उनसे उबरो
नदी-घाट भीगेगा
जंगल हरियाएगा
राह का फ़कीर तभी
नेह-गीत गायेगा
अपनी इन ऊँची
मीनारों से
जल्दी नीचे उतरो