लिया जन्म
तो पहले पहल
पहने कपड़े
बड़ों के छोड़े हुए
चढ़ीं सीढियाँ
जो थीं दबी हुई
पुरखों के पैरों से
पहला पाठ जो आया ज़ुबान पर
वह था हृदय के पार
गहरे सोतों से नि:सृत धार
मिली जो स्लेट
उस पर थे लिखने और पोंछने के
पिछले निशान
किताबों के पन्नों पर
काले अक्षरों से इतर
बिखरा था ज्ञान
तय कीं जितनी राहें
उनकी तहों से
आती रहीं हरदम
पहले तय की गयी यात्राओं की आहटें
गुनगुनाता रहा वही
कई साँसों की लय में बँधी हवा
पिया बार-बार मिट्टी की छलनी में
रेत के रेशों से छना आब
रहा हमेशा आदिम ख़ुशबुओं के साथ
मन को उड़ाया बहुत दूर
कटी थी जहाँ कल बच्चों की पतंग
जलायी दिल के बहुत भीतर
जंगलों की वही पुरानी आग
सोचता हरदम
अतल अन्नत में डूबकर
चुनता सृष्टि का पुरातन स्पन्दित कण
सुनता उसकी धड़कन
जीता पहला जीवन क्षण।