मैं जब आरोप लगाता हूँ
यह समय भयानक है
तो भूल जाता हूँ
कि उसी समय में धड़कता
एक क्षण मैं भी हूँ
इस तरह सारे आरोप
शुरू मुझसे होते हैं
मैं लगाता हूँ जब यह आरोप
कि चरित्र लोगों के
हो गए पतनशील
तो यह भूल जाता हूँ
उन्हीं लोगों में शामिल हूँ मैं भी
इस तरह सारे संदेह
शुरू मुझसे होते हैं
मैं बाज़ार को कोसते हुए
जब लिखता हूँ कविताओं में आक्रोश
तो यह भूल जाता हूँ
इतनी कुव्वत नहीं
कि नकार सकूँ चमकीले प्रलोभन
इस तरह सारे झूठ
शुरू मुझसे होते हैं