अब रात-बेरात
काले अर्धचन्द्र-सा
खड़ा रहता है वह
उसकी गोद में
टिमटिमाता है
कुछ--
बचे हुए पेड़
मायूसी में कहते हैं
यह आग नहीं
बंधुआ रोशनी है
वरना
पहाड़ काला ना होता।
अब रात-बेरात
काले अर्धचन्द्र-सा
खड़ा रहता है वह
उसकी गोद में
टिमटिमाता है
कुछ--
बचे हुए पेड़
मायूसी में कहते हैं
यह आग नहीं
बंधुआ रोशनी है
वरना
पहाड़ काला ना होता।