पहाड़ पर चढ़ते हुए
तुम्हारी साँस फूल जाती है
आवाज़ भर्राने लगती है
तुम्हारा क़द भी घिसने लगता है
पहाड़ तब भी है जब तुम नही हो ।
(रचनाकाल :1975)
पहाड़ पर चढ़ते हुए
तुम्हारी साँस फूल जाती है
आवाज़ भर्राने लगती है
तुम्हारा क़द भी घिसने लगता है
पहाड़ तब भी है जब तुम नही हो ।
(रचनाकाल :1975)