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पहाड़ पर बदलता मौसम / कुमार कृष्ण

मैंने खेत पर कविता लिखकर
एक बड़ी गलती कर दी
लोग उसे बिजूका समझकर
पक्षियों को डराने की चीज समझ बैठे
मैं उनसे कैसे कहूँ यह बिजूका नहीं
आदमी और खेत के बीच तनी हुई
बैल की पीठ है
जिसे जितना पलोसते जाओ
वह और काँपती जाती है।
मेरे छोटे-छोटे सच


आखिर किसे सौंप दूँ मैं अपने
छोटे-छोटे झूठ, छोटे-छोटे सच
पिता का भय
पत्नी का प्यार
बच्चों का भविष्य
अक्सर आ जाता है बीच में
शायद वे सब चले जाएँगे एक दिन
इसी तरह मेरे साथ
नहीं जान पाएँगे लोग
मेरे छोटे- छोटे झूठ
मेरे छोटे- छोटे सच।