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पहाड़ लागै छै / कस्तूरी झा ‘कोकिल’

एक्को घड़ी आपनें बिना पहाड़ लागै छै।
सूनीं महलिया में सिंघो के दहाड़ लागै छै।।

थर-थर देह काँपै छै,
फेफड़ो अजी हाँफै छै।
मोॅनों खूब्बे अकुलाय छै,
कोय कहाँ बहलाय छै?

रही-रही घोड़ा रॅ लताड़ लागै छै।
एक्को घड़ी आपनें बिना......दहाड़ लागै छै।

पैर ठीक रहलॉ सें
बूली लरी ऐतियाँ।
सूखी सहेली सें
बोली-बाजी लेतियाँ।

जीते जी भारी सुखाड़ लागै छै।
एक्को घड़ी आपनें बिना......दहाड़ लागै छै।

खाना पीना होयतै छै,
सेवा टहल मिलथैं छै।
नूनूँ साथ सुतथैं छै,
गीतनाद सुनथैं छै।

अकेली समैया मतुर दम-पछाड़ लागै छै।
एक्को घड़ी आपनें बिना पहाड़ लागै छै।
सूनीं महलिया में सिंघो के दहाड़ लागै छै।