पहिए
चलते हैं
चलते-चलते
फिर वहीं पहुँचते हैं
इंतजार में जहाँ
चल पड़ने को
तुले रहते हैं
टूटते-टूटते जब तक
टूट नहीं जाते
भूगोल की रगड़ खाते
समय से टकराते
रचनाकाल: ०५-०८-१९७१
पहिए
चलते हैं
चलते-चलते
फिर वहीं पहुँचते हैं
इंतजार में जहाँ
चल पड़ने को
तुले रहते हैं
टूटते-टूटते जब तक
टूट नहीं जाते
भूगोल की रगड़ खाते
समय से टकराते
रचनाकाल: ०५-०८-१९७१