गुरु ने छीन लिया हाथों से जाल,
शिष्य से बोले :
'कहाँ चला ले जाल अभी ?
पहले मछलियाँ पकड़ तो ला ?'
तकता रह गया बिचारा
भौंचक ।
बीत गए युग । चले गए गुरु ।
बूढ़ा, धवल केश, कुंचित मुख
चेला
सोच रहा था अभी प्रश्न :
'क्यों चला जाल ले ?
पहले, रे मछलियाँ पकड़ तो ला ?'
सहसा भेद गई तीखी आलोक-किरण ।
'अरे, कब से बेचारी मछली
घिर अगाध से
सागर खोज रही है !'
प्नोम् पेञ् (कम्बुजिया), 2 नवम्बर, 1957