दर्पण में
जन्मी छाया से
मैंने अपनी कथा कही ।
बहुत बढ़ाकर
कहने पर भी
कथा रही
ढाई आखर की
गूँज उठी
सारी दीवारें
पाँच खिड़कियों
वाले घर की
एक प्रहर
युग-युग जीने की
सच पूछो तो प्रथा यही ।
दर्पण में
जन्मी छाया से
मैंने अपनी कथा कही ।
बहुत बढ़ाकर
कहने पर भी
कथा रही
ढाई आखर की
गूँज उठी
सारी दीवारें
पाँच खिड़कियों
वाले घर की
एक प्रहर
युग-युग जीने की
सच पूछो तो प्रथा यही ।