पाँच वर्षों का मुकम्मल दीजिए पहले हिसाब।
फिर करेंगे हम दुबारा वोट का वादा जनाब।
आप तो संसद में बैठे ऐश ही कारते रहे
और ख़ाली पेट हमने भूख का देखा अज़ाब।
जब तलक हम एक थे ख़ुशहाल थे, आबाद थे
आप ने जब फूट डाली हो गए ख़ाना-ख़राब।
ये नया मौसम हमें कुछ रास आया था मगर
आपके ही मालियों ने नोच डाले सब गुलाब।
आपने सोचा कि फिर से डगमगा जाएँगे हम
अब न बहकाएगी हमको आपकी देसी शराब।