ये किस कृष्ण विवर में फेंका गया
किसकी सांसें हैं यहां
गंध किसकी है कुछ-कुछ पहचानी
पोरों से खौफ में गुम हुई हरकत
छूता हूं जिसको अब बेगाना-सा क्यूं लगता है?
बूटों की बेमुरव्वत ठोकरों के बीच
रोता है कौन यहां अपना-सा
लौटना चाहूं तो सारे ठिकाने गायब
जल चुकी बस्ती
और टोले के लोग बीत गए
तरफदारी में कौन किसका है कहना मुश्किल
जरा सा सफेद का वहम और चौतरफ काला
ऐसे अधबीच में हूं कि निकलना दूभर
उठता हूं दौड़ने को बस पांव भूल जाता हूं.