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पांच जोड़ बांसुरी कहाँ / रामनरेश पाठक

एक जोड़ का पता नहीं
पांच जोड़ बांसुरी कहाँ ?

सीपियाँ प्रतीक्षिता रहीं
रेत, रेत, रेत रह गयी
मोतियाँ तिजोरियों पड़ीं
दस्तकें वनालिका गयीं

एक गीत का पता नहीं
पांच जोड़ गीतिमा कहाँ ?

चांदनी पुरंजनी बनी
माघ लो कबीर बन गए
भस्मीपूत वेणु-वन हुए
चौखटे अबीर बन गए

एक गुलमोहर कहीं नहीं
पांच जोड़ गुलमोहर कहाँ ?

राग, विम्ब--केतकी तरी
भाव छंद--नाग की फनी
अर्थमुक्त सृष्टि के प्रतीक
रूप, ताल--स्वेद की कनी

एक साम का पता नहीं
पांच जोड़ सामिका कहाँ ?

एक सिन्धु का पता नहीं
पांच जोड़ सिन्धुमा कहाँ ?

एक बिंदु का पता नहीं
पांच जोड़ बिंदुमा कहाँ ?