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पाखी हिन्दुस्तान के / मधुसूदन साहा

हर मौसम में हँसते-गाते
पाखी हिन्दुस्तान के।
सरदी-गरमी सब कुछ सहते,
आपस में मिल जुलकर रहते,
सांझ-सबेरे डाल-डाल पर
मीठी-मीठी बातें कहते,

हरदम स्नेह-सुधा बरसाकर
पेड़ों के पत्ते चहकाते
पाखी हिन्दुस्तान के।

दूर-दूर से दाना लाते,
हर बच्चे से प्यार जताते,
जब तक सबकी भूख न मिटती
तब तक कभी न खाना खाते,

अपने इन नियमों पर चलकर
जन-जन को जीना सिखलाते
पाखी हिन्दुस्तान के।

कभी वेद का पाठ पढ़ते,
कभी गीत-संगीत सुनाते,
कभी देश की सीमा पर से
गुप्त सूचना लेकर आते,
कभी ज्ञान की बात बताकर
पंडित को भी मात दिलाते
पाखी हिन्दुस्तान के।