बीत गये है बरसों लेकिन जाने कैसा नाता है ।
प्रिये आज भी उसी गली से पागल आता-जाता है ।
बात पुरानी और मुहब्बत
अब भी पहले वाली है !
मगर शहर ये बिना तुम्हारे
बिल्कुल खाली खाली है !
याद दिलाकर बीती बातें वक्त इसे बहकाता है ।
प्रिये आज भी उसी गली से पागल आता-जाता है ।
रात-रात भर जगता है ये
बतियाता है तारों से !
तन्हाई में तुम्हें ढूँढ़ता
भाग रहा त्योहारों से !
कभी तुम्हारे खत पढ़कर ये अन्तर्मन महकाता है ।
प्रिये आज भी उसी गली से पागल आता-जाता है ।
दीप जलाता नहीं शाम को
दिल वैसे भी जलता है ।
खुद ही खुद में डूबा है बस
खुद ही खुद को छलता है ।
विरह अग्नि को अश्कों से ये बस केवल दहकाता है ।
प्रिये आज भी उसी गली से पागल आता-जाता है ।