Last modified on 27 जुलाई 2024, at 00:38

पाठ / निधि अग्रवाल

मन्दिर के परिसर में खड़ा वो गुलमोहर
ज़रा भी फ़ीका तो न था,
मस्जिद के मार्ग में खड़े गुलमोहर से।
किसी चिड़िया को नहीं देखा मैंने वज़ू करते।
कोई मोर कभी नहीं नाचा
किसी धर्म विशेष का पट्टा लिए।
निशीगन्धा के पुष्प नहीं महका करते
कोई उपवास रख कर।
न हरसिंगार झरा, पीर की चादर पर,
नदियों ने बहने के लिए
नहीं देखा कोई शुभ मुहुर्त।
और न ही गिरिजा पर हवा बहती है
कुछ अलग मन से।
दक्षिण के बादल को उत्तर में
भाषा की कोई समस्या कब हुई?
उपवन का कोई धर्मगुरु न था।
जंगल में नहीं बताया गया शांति सन्देश,
प्रकृति के किसी अवयव ने किया नहीं
परस्पर कोई मतभेद।

वसुधैव-कुटुम्बकम का सन्देश देने वाले
धर्म-ग्रंथों का अध्ययन करते
वो अनुयायी कौन थे ?
जिन्होंने धर्म की रक्षा हेतु
लील लिए अनगिनत जीवन।
आज कक्षा में पढ़ाया गया कि
हिन्दू-मुस्लिम औ' सिख ईसाई
आपस में हैं भाई-भाई,
तब से बच्चे टोलियों में बँटे बैठे हैं
एक दूसरे को संशय से देखते।