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पात पुरातन लेकर / केदारनाथ अग्रवाल

पात पुरातन लेकर
पतझर चला गया
प्रिय बसंत अब आया
दंड-देहधारी विटपों का
दल किसलय से हरसाया।
फूला,
महका,
लोक-तंत्र को भाया।
कविता-कोकिल ने
छंदों में गाया।

रचनाकाल: ०३-०२-१९९१