दूध
दूध सभटा दहा रहल
बहि रहल धार सदृश
मनक मन
टनक टन
नित दिन निज धर्मक
खेप पुराबय लेल
बहि गेल दूध
सभटा पाथर पर।
धर्माडंबरक अम्बर ओढ़ै लेल
पंचामृतक एकटा अमृत
धेनुक धरोहर
सभटा कामधेनु बुझि
दूध दूहि बहा रहल छी
नहा रहल छी नित दिन
ढारि रहल छी
पाथरक भगवान पर।
परमात्मा अराधनाक एकटा ढ़ोंग
पोंगापंथी आ की ढोंगापंथी
क' रहल सभ धर्माचारी
तखन त
देशक ओहनो भक्त अछि
जे आठो प्रहर
बहा सकैत अछि
दूधक नदी
आ बनि सकैत छथि रावण
क' सकैत छथि मुट्ठी मे
अपन आराध्य देव केँ।
ईश्वर
ईश्वर भेटैत छथि
सूच्चा भक्ति सँ
पखारल हृदय केर शक्ति सँ
कीनल वा तौलल नहि जा सकैछ
एम्हर दुधमुँहा देशक
दूधक एकटा बून लेल
मुँह बौने, किलोल करैत
प्राण त्यागि सून करैत
छोड़ि दैछ संसार
केहेन ई पूण्य लेल धर्माचरण
जतय जीवक लेल दूधे नहि
पाथरक लेल दूध!