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पाथर / दीपा मिश्रा

हमर चारूकात पाथर अछि
खाली पाथर
कतेको युगसँ एहिना ठाढ़
पुरान, बेजान, गुम्मी लदने पाथर
मुदा नहि जानि किएक
ओकरासँ मोह बढ़ले जाइत अछि
बिछिकए आनि लैत छी एखनो
जहँतरि-पहँतरि कतेको छोट-पैघ पाथर

पितामही जहिआसँ
अहल्याक खिस्सा सुनयलनि
तहिएसँ पाथरमे जेना
पथराएल आँखि सब देखाए लागल छल
होइत छल जे ओ किछु कहय चाहैए
कहुखन हुअय जे
ई जुग-जुगसँ बाट जोहैत कोनहु
आत्मा त' नहि जे उद्धारक आसमे
तपस्या करैत बैसल अछि
 
किछु काल मात्सर्यसँ
पाथर दिस टकटकी लगौने तकैत छी
बहुत रास प्रश्न जे घुरियाइत अछि भीतर,
पुछैत छी स्वगत भेल
मुदा निरुत्तर रहि जाइत छी
ओकरामे कोनहु स्पंदन नहि होइत छै
अबाज पुनश्च घुरि लग आबि जाइए

मोन तमसाएत अछि
पाथरपर प्रहार करैत छी
आह!
मुट्ठीसँ शोणित बहय लगैए
दर्दसँ तिलमिलाए छी, कना जाइए
मुदा रक्त देखिओकेँ ओ किछु नहि कहैए
एना बुझा रहल जे पाथर हृदय विहीन,
निरमोही आ बड सक्कत हुअय

भेल जे पाथरकेँ खिस्सा सब सुनबैत छी
ओकर मोन बहटारल जेतै
ओकरा लग बैसिकए
कविताओ पाठ करैत छी
ओकरा परतारबाक सब प्रयास करैत छी
होइए कोहुना त' पाथर बाजत
मुदा पाथर त' पाथर अछि
अपन प्रवृत्ति कोना छोड़त

आब पाथरसँ वितृष्णा सन लागय लगैए
ओकरा अपशब्द कहब शुरू करैत छी
बिखिन्न बिखिन्न गाइर पढ़ैत छी
ना ओ टस्स से मस्स नहि होइए
पता नहि ई सब केहन पाथर छै
कथुक असरि नहि होइत छै
जोरसँ ओकरा लात मारि
उलहन दिअय लागय छी
ओकर अपमान कऽ जेना आत्मसंतोष होइए

तखने दूरसँ एकटा तेज अबाज सबदिस गूंजय लगैये
जेना ककरो मैय्यत संग बहुत लोक कानि रहल
मोनहि मोन डराए जाइत छी
बाज बहादुरक किलासँ नीचाँ झांकि देखैत छी
जे केतहु किओ देखबामे आबय
अनचोकहि पाथरकेँ छूबि देखैत छी
तऽ ओ भीजल छल